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प्रेत आत्माओं के रहस्य – भाग 2 (तंत्र और प्रेत आत्माएं)

प्रेत-आत्मा रहस्य
प्रेत-आत्मा रहस्य
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प्रकृति के अनंत रहस्यों में प्रेत आत्माओं का रहस्य हमारे जीवन में विशेष महत्व रखता है क्योंकि हमारी वैज्ञानिक बुद्धि अभी तक वायु तरंगों के इस रहस्य का समाधान करने में सफल नहीं हुई है इसलिए इसे विश्वास या अंधविश्वास जैसी नाना प्रकार की मान्यताएं मानवीय जीवन में प्रचलित हैं इसको हम अपने शब्दों में विवेचन करते हैं ।

प्रकृति में मनुष्य सभी जीवो से, विवेक के कारण श्रेष्ठ माना गया है । उसने अपना बहुमुखी विकास भी कर लिया है और आज भी यह प्रयास कर रहा है कि प्रकृति पर उसका पूरा नियंत्रण हो जाए लेकिन अभी बहुत ऐसे क्षेत्र हैं जो सिर्फ रहस्य बने हुए हैं ।

अब हम अपने मूल विषय प्रेतआत्माओंकेरहस्य पर चर्चा करेंगे ।

प्रस्तुत विषय को समझने के लिए हम व्यक्तियों को तीन श्रेणियों में विभक्त करते हैं । उच्चतम चेतना वाले व्यक्ति, जिनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य मानव कल्याण, सत्यता का मार्ग निर्देशन, मानवता की सेवा और अपनी करुणा से जनहित के कार्य करते हैं उन्हें हम देवशक्तियों के रूप में जानते हैं ।

दूसरे प्रकार के व्यक्ति, ठीक देव शक्तियों के विरुद्ध, अत्यंत क्रूरतम और विध्वंशक कार्य करने वाले अत्याचारी, जघन्य अपराधों में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को हम दानव और राक्षस की श्रेणी में रखते हैं ।

तीसरे प्रकार के व्यक्ति, जो सिर्फ संसारी भोग-विलास, पद प्रतिष्ठा के लोलुप, अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य भौतिक सुख साधनो को प्राप्त करने वाले सामान्यजन जिन्हें हम तीसरी श्रेणी में रखते हैं । ये सांसारिक इच्छाओं और वासनाओं की अतृप्ति के कारण भूत-प्रेत का जन्म लेते हैं ।

अतृप्त आत्माएं शरीर को ही सुख का केंद्र मानति हैं । उन्हें चेतना या आत्मा का कोई पता भी नहीं होता है  । उनका पूरा जीवन इस शरीर को केंद्र मानता है इसलिए वह किसी शरीर में प्रवेश करके जीवन रस प्राप्त करना चाहती हैं और कमजोर आत्मा वाले शरीर में प्रवेश कर जाती हैं । परकाया में प्रवेश करने वाली प्रेत आत्माओं के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं और कई कारणों से शरीर में प्रवेश कर सकती हैं । अब हम प्रेत आत्माओं के बारे मे चर्चा करते हैं ।

प्रेषितआत्माएं : प्रेषित आत्माएं वह आत्माएं होती हैं जिन्हें ईर्ष्यावश, धन लोभ के कारण दूसरे के शरीरों में प्रेषित कर दिया जाता है ।  प्रेषित आत्माओं का प्रयोग किसी का जीवन तबाह और बर्बाद करने के लिए किया जाता है । यह आत्माएं निकृष्ट कार्य  करने वाली होती हैं जैसे विद्वेषण, उच्चाटन, मारण, मूठ और मसान आदि नामों से जाना जाता है

आगतआत्माएं : आगत आत्माएं इंद्रीय सुखों की प्राप्ति के लिए किसी शरीर में तुरंत प्रवेश कर जाना चाहती हैं । जैसे ही इन्हें कोई कमजोर आत्मा का शरीर उपलब्ध हो जाता है, उसमें प्रवेश कर जाती हैं ।  यह बेचैन आत्माएं किसी शरीर में उस समय प्रवेश करती हैं जब व्यक्ति भयभीत दशा में होता है तो भयभीत अवस्था में शरीर के कई अंगों में संकुचन होता है और थोड़ा सा स्थान खाली हो जाता है उस खाली स्थान में एक  या अनेक  बेचैन आत्माएं प्रवेश कर जाती हैं । प्रवेशित आत्माएं ग्रसित व्यक्ति के दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप करके, अपनी इच्छा पूर्ति के लिए उसे भ्रमित करती हैं और अनेक अनचाहे कार्यों को करने के लिए बाध्य करती हैं । इस प्रकार ग्रसित व्यक्ति के व्यवहार परिवर्तन से घर के सदस्य परेशान होकर किसी बीमारी की आशंका से डॉक्टर के पास ले जाते हैं लेकिन इससे सुधार के बजाय ग्रसित व्यक्ति दिन-पर-दिन कमजोर होता जाता है और किसी की समझ में कुछ नहीं आता है ।

प्रतिशोधात्मकआत्माएं : प्रतिशोधात्मक आत्माओं का संबंध, हत्या, डकैती और अकारण मृत्यु वाले व्यक्तियों से है । इस प्रकार की बलिष्ट आत्माएं उन लोगों से अपना प्रतिशोध लेती हैं जिन्होंने अकारण ही उन्हें मृत्यु तक पहुंचा दिया है । ये प्रतिशोधवश, कई छाया रूप भी धारण कर सकती हैं और अपने शत्रु का जन, धन और तन की भी हानि कर सकती हैं । जब इन्हें शरीर से हटाने का तांत्रिक अनुष्ठान किया जाता है तब यह शरीर पर प्रकट होकर अपना सब रहस्य बताती हैं । यह आत्माएं आसानी से नहीं हटाई जा सकती हैं जैसे जिन्न और जिन्नाद ।

आसक्तिपूर्णआत्माएं : आसक्तिपूर्ण आत्माओं का प्रभाव शरीर में इस प्रकार रहता है कि लंबे समय तक किसी को कुछ भी पता नहीं चलता है । यहां तक कि जिसके शरीर में यह रहती हैं उसको भी पता नहीं चल पाता है । किसी विशेष अवसर पर इन आत्माओं को मजबूरी में प्रकट होना पड़ता है । यह शरीर को दोनों तरह से प्रभावित करती हैं – यह ग्रसित शरीर को खतरे से भी बचाती हैं और शरीर में निवास के कारण उसे स्वस्थ भी नहीं रहने देती हैं  । जैसे ही शरीर स्वस्थ होने लगता है वैसे ही रसपूर्ण होकर शरीर को कमजोर कर देती हैं । इनकी आसक्ति का कारण कई जन्मों का साथ भी हो सकता है ।

चिकित्सा शास्त्र में एक बीमारी के बारे में बताया गया है जिसे  एकाधिक व्यक्तित्व विकास या मल्टी पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहते हैं । इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति कई प्रकार से व्यवहार में बदलाव करता है जैसे की कभी बच्चा, कभी युवक, कभी गृहस्थ और कभी संसार से वैराग्य की बात करता है । यह बीमार व्यक्ति चार प्रकार के व्यक्तियों जैसा एक साथ व्यवहार करता है इसलिए इस बीमारी का नाम एकाधिक व्यक्तित्व विकार या मल्टी पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहते हैं । उदाहरणस्वरूप, कभी बच्चों की तरह ताली बजाएगा तो कभी क्रिकेट का स्कोर बताएगा, कभी नौकरी की बात करेगा इत्यादि ।

इस प्रकार के मरीज का इलाज सिर्फ दवाइयों से संभव नहीं है और किसी भी प्रकार की जांच कराने से कोई लक्षण प्रदर्शन नहीं होता है । मेरा ऐसा मानना है कि कभी कभी भय में या विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति के शरीर में कई प्रकार के सूक्ष्म शरीरों का प्रवेश हो जाता है और पीड़ित व्यक्ति सब प्रकार के व्यक्तित्व का परिचय, सूक्ष्म शरीरों के व्यक्तित्व के आधार पर देने लगता है । अंततः उसको करीब-करीब पागल मान लिया जाता है ।

सूक्ष्म शरीर या सूक्ष्म शरीरों से प्रभावित व्यक्तियों को तंत्र विज्ञान से ठीक किया जा सकता है या तांत्रिक विधियां सफलता दिला देती हैं क्योंकि तंत्र का संबंध तरंगों से हैं । सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि तंत्र है क्या ?

तंत्र का अर्थ होता है सिस्टम या विधि । उदाहरण के लिए, …

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